बिलासपुर का निर्माणाधीन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान AIIMS जहां दूर-दूर से लोग इलाज करवाने के लिए आ रहे हैं वह संस्थान खुद ही बीमारियों का केंद्र बना हुआ है और आने वाले समय मे बड़ी महामारी का कारण बन सकता है।
यहाँ करीब तीन हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूर प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य में लगे हुए हैं लेकिन अफसोस की बात यह है इतनी ज्यादा संख्या में मजदूर होने के बावजूद भी कंपनी के द्वारा ना तो कचरे के निष्पादन की कोई व्यवस्था की गई है और ना ही मजदूरों के लिए बनाए गए शौचालय काम कर रहे हैं।
इसका नतीजा यह हुआ है कि एम्स के आसपास चारों तरफ कूड़े के पहाड़ खड़े हो गए हैं। मजदूर खुले में शौच जाने को मजबूर हैं। जगह-जगह जलभराव के कारण सड़ांध पैदा हो गई है और मजदूर इसी गंदगी में रहने को मजबूर हैं। प्लास्टिक का कूड़ा खुले में जलाया जा रहा है। मजदूर खुले में शौच जा रहे हैं।
प्लास्टिक की बोतलें पॉलिथीन के पैकेट से लेकर हर तरह का कचरा स्थानीय लोगों की निजी जमीनों को खराब कर रहा है। इस गन्दगी के आस पास आवारा जानवरो जमावड़ा लगा रहता जो लोगो की फसलें बर्बाद कर रहे हैं।
गौरतलब है कि इस प्रोजेक्ट के साथ में ही पानी पीने के पानी के प्राकृतिक जल स्त्रोत भी दूषित हो रहे हैं।
यहां से पेयजल की सप्लाई 4 पंचायतों कोठीपुरा, राजपुरा रघुनाथपुरा और नोनि को जाती है और करीब 10,000 लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित हैं।
अधिवक्ता एवं समाजसेवी सुमन ठाकुर ने बताया कि यह राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी के सॉलि़ड वेस्ट मैनेजमेंट के प्रावधानों का सरे आम उल्लंघन है।
इन कंपनियों के अधिकारियों के खिलाफ अपराधिक मामला भी दर्ज किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर इस कचरे को तय समय सीमा में नहीं हटाया जाता है और शौचालयों की व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जाता है तो मजबूरन उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा जिसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन इन और निजी कंपनी की होगी।
उन्होंने बताया कि इस बाबत वो जिलाधीश बिलासपुर पुलिस अधीक्षक बिलासपुर इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग और पेयजल विभाग के समक्ष भी यह मुद्दा उठा चुके हैं लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।