# आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरे भी कम नहीं, बौद्धिक-जड़ता की आशंका |

खबर अभी अभी ब्यूरो सोलन

24 फरवरी 2023

Impact: Artificial Intelligence | MISTI

यदि हम कृत्रिम मेधा तकनीक का सहारा लेकर मौलिक ढंग से सोचना-विचारना ही बंद कर देंगे, तो बौद्धिक-जड़ता के शिकार हो जाएंगे।

इन दिनों कृत्रिम मेधा या कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) काफी चर्चा में है। और अब उसका विस्तार ‘चैटजीपीटी’ (चैट जेनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफर्मर) के माध्यम से हो रहा है। ‘ओपनएआई’ नामक कंपनी ने नवंबर, 2022 में अपनी यह वेबसाइट शुरू की और देखते-ही-देखते लाखों लोग इससे जुड़ गए। यह वेबसाइट सबको इसलिए आकर्षित कर रही है, क्योंकि यहां लॉगइन करने के बाद आप कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर पा सकते हैं।

लेकिन ‘एआई’ एक ऐसी नई तकनीकी है, जो मनुष्य की मौलिकता को खत्म कर सकती है, या कर रही है। अब जैसे किसी व्यक्ति को किसी अवसर विशेष की कविता लिखनी है, तो वह इस कृत्रिम मेधा की मदद से एक कविता लिख सकता है।  मतलब लोग एआई के जरिये अब लेखक भी बन सकते हैं, भले ही वे विचार शून्य और प्रतिभाहीन हों। बस उसे तकनीक की जानकारी होनी चाहिए। सोचिए तो जरा, यह कितनी खतरनाक स्थिति है। अब मनुष्य की जगह मशीन सोचेगी और जवाब देगी तथा आदमी बैठकर पित्जा खाएगा!

तकनीकी के इस नए पड़ाव से बचना चाहिए। यह ठीक है कि कभी-कभी कोई महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए हम ‘एआई’ का इस्तेमाल जरूर करें, लेकिन मौलिक चिंतन या सृजन के लिए कृत्रिम मेधा का सहारा न लें, तो ही बेहतर। इसके लिए ईश्वर प्रदत्त मेधा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मेधा को तेज करने के लिए अध्ययन जरूरी है। मगर अब नई पीढ़ी अध्ययन-मनन करना ही नहीं चाहती, क्योंकि वह सुविधाभोगी हो गई है।

जिस युवा पीढ़ी से हम कर्मठता और चपलता की उम्मीद करते हैं, वह इतना आलसी हो जाएगा, इसकी कल्पना नहीं थी। खैर, ये तो समय-सापेक्ष विसंगतियां हैं। जैसे अब स्मार्ट फोन आ गए हैं, तो छोटे-छोटे बच्चे बाहर जाकर खेलने के बजाय मोबाइल चलाने में ही लगे रहते हैं। नन्हा शिशु भी मोबाइल पर कार्टून देखकर खाना खाना चाहता है। यह सब हमें अब झेलना भी है और इसे रचनात्मक हथियार भी बनाना है। आज गूगल के जरिये अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां हमें मिल जाती हैं। किसी भी क्षेत्र की कोई सूचना हो, गूगल में टाइप करने पर विस्तार से वह जानकारी हमारे सामने आ जाती है। अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए गूगल का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन गूगल में दी गई जानकारी को जस-की-तस उतारना नहीं चाहिए, बल्कि संबंधित सूचनाओं के आधार पर अपना मौलिक चिंतन पेश करना चाहिए।

चैटजीपीटी के जरिये हम अपने अनेक सवालों के जवाब पा सकते हैं। यह मॉडल बिल्कुल मनुष्यों की तरह आपके हर सवाल का जवाब दे सकता है। धीरे-धीरे इस माध्यम से लाखों लोग जुड़ते चले जा रहे हैं। भविष्य में भी जुड़ते जाएंगे। बस, खतरा यही है कि इसका इस्तेमाल करते-करते लोग कहीं अपना मौलिक-चिंतन, अपनी मौलिक-मेधा ही न भूल जाएं। जब आप ‘एआई’ की मदद से कविता एवं लेख लिखेंगे, तो आपकी अपनी मौलिकता क्या रह जाएगी! यह तो एक तरह से रचनात्मक चोरी हुई। मुहावरे में कहूं, तो उधार का सिंदूर।

ठीक है कि छात्रों को पढ़ाई से संबंधित अनेक प्रश्नों का समाधान इसमें मिल सकता है। व्यवसायी को एआई के जरिये कुछ टिप्स भी मिल सकते हैं। हमें अनुवाद के जरिये किसी चीज को समझने में मदद मिल सकती है। यहां तक तो ठीक है, लेकिन मौलिक सृजन अगर खत्म हो जाएगा, तो सोचिए, हमारी अपनी ईश्वर प्रदत्त मेधा का क्या होगा? यदि हम कृत्रिम मेधा का सहारा लेकर सोचना-विचारना ही बंद कर देंगे, तो बौद्धिक-जड़ता के शिकार हो जाएंगे।

इसलिए एआई का इस्तेमाल बहुत जरूरी मुद्दे पर ही करना चाहिए। अगर हम ‘एआई’ या ‘चैटजीपीटी’ के सहारे ही रहने के आदी हो गए, तो यह भी हो सकता है कि कभी-कभी गलत सूचना या रचना सामने आ सकती है, जिससे हमें नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, या शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है।

खबर अभी अभी ब्यूरो सोलन

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