केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के जवानों को मोटे अनाज की मिल रही सेहतमंद रोटी

#खबर अभी  अभी शिमला ब्यूरो*

15 सितंबर 2023

हिमाचल प्रदेश में परियोजनाओं की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) के जवानों के भोजन में 30 फीसदी मोटा अनाज खाने में शामिल किया गया है। इस अनाज में 70 फीसदी गेहूं डाला जा रहा है। गृह मंत्रालय के आदेश के बाद सीएपीएफ के जवानों के लिए सेहत की रोटी अनिवार्य की गई है। हिमाचल की कई परियोजनाओं में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवान सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं। इन सभी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए इनके भोजन में ज्वार, बाजरा, रागी, ककून, कुटकी, कोदो, सावा और चना को 30 फीसदी शामिल कर दिया गया है। हिमाचल में मोटे अनाज का उत्पादन न होने और इसका उपयोग कम होने के कारण दुकानदार भी इसकी कम ही सप्लाई लेते हैं।

इससे उद्योगों में लगे सुरक्षा बलों के जवानों को मोटा अनाज उपलब्ध कराने में परेशानी हो रही है। बड़ी बात यह है कि हर माह गृह मंत्रालय को इसकी रिपोर्ट जाती है कि किस प्रोजेक्ट में कितने जवानों के लिए कितना मोटा अनाज और कितना गेहूं,चावल पकाया गया। अप्रैल में गृह मंत्रालय ने सभी सुरक्षा बलों को मोटा अनाज आधारित मेन्यू अपनी मेस में शुरू करने के आदेश दिए थे।सीएपीएफ के विभिन्न कार्यक्रमों में भी मोटे अनाज का ही उपयोग करने के आदेश जारी हुए हैं। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर से भरपूर होने के कारण मोटे अनाज को सुपर ग्रेन भी कहा जाता है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों की सभी बटालियन निर्देशों का सख्ती से पालन कर रही हैं।

कई आवश्यक तत्वों की होती है पूर्ति
मोटे अनाज से शरीर में कई आवश्यक तत्वों की पूर्ति होती है। इसके जरिए शरीर को बहुत अच्छी मात्रा में पोषक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, डाइटरी फाइबर और गुड क्वालिटी फैट आदि मिल जाते हैं। इसके साथ ही मोटे अनाज में कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, मैगनीज, जिंक और बी कॉम्पलेक्स विटामिन जैसे मिनरल भी रहते हैं। इसी वजह से मिलेट को न्यूट्रीशियन रिच एंड क्लाइमेट स्मार्ट फसल कहा जाता है।

मोटे अनाज में ये हैं शामिल
प्रमुख मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, ककून, कुटकी, कोदो, सावा और चना को शामिल किया गया है। वर्तमान में मोटे अनाज यानी मिलेट का सुपर फूड के तौर पर प्रचार किया जा रहा है। सीएपीएफ की ओर से विभिन्न यूनिटों, सेक्टरों, ग्रुप सेंटरों और अन्य इकाइयों को भेजे सर्कुलर में मिलेट को लेकर जानकारी दी गई है। कहा गया है कि 1965 में हरित क्रांति के दौरान मिलेट पर जोर दिया गया था। हालांकि तब भी मिलेट का देश के विभिन्न हिस्सों में परंपरागत तौर से इस्तेमाल हो रहा था।

#खबर अभी  अभी शिमला ब्यूरो*

Share the news