
#खबर अभी अभी सोलन ब्यूरो*
29 अप्रैल 2023
देश के बड़े शहरों के लोग इस साल हिमाचल की रसीली चेरी का स्वाद नहीं ले पाएंगे। मौसम की मार से इस साल प्रदेश में सामान्य के मुकाबले महज 15 से 20 फीसदी ही चेरी का उत्पादन हुआ है। सर्दियों में पर्याप्त बारिश, बर्फबारी न होने से जहां चेरी पर सूखे की मार पड़ी है, वहीं इन दिनों बारिश और ओलावृष्टि से तापमान में गिरावट के चलते फसल को नुकसान पहुंचा है। इस साल चेरी सीजन करीब दो हफ्ते लेट है। हिमाचल से चेरी दिल्ली होते हुए मुंबई, कोलकाता, बंगलूरू और गुजरात तक भेजी जाती है। हिमाचल में सबसे अधिक चेरी उत्पादन शिमला जिले के नारकंडा, कोटगढ़, बागी, मतियाना, कुमारसैन और थानाधार में होता है। ननखड़ी की चेरी बाजार में आनी शुरू हो गई है। उत्पादन कम होने के चलते सीजन की शुरुआत में बागवानों को रिकाॅर्ड रेट मिल रहे हैं।
ननखड़ी खड़ेला के चेरी उत्पादक राज मेहता का कहना है कि हर साल करीब 1200 बॉक्स चेरी उत्पादन होता था, इस साल 200 बॉक्स उत्पादन भी मुश्किल है। नारकंडा के जाने माने चेरी उत्पादक अजय कैंथला का कहना है कि लो हाइट में 10 से 15 फीसदी ही फसल है। हाइट में भी बारिश से तापमान गिरा है, जिससे फ्लावरिंग प्रभावित हो रही है। ज्यादा बारिश से फ्रूट क्रेकिंग की समस्या हो सकती है। हिमाचल में सालाना 700 से 800 मीट्रिक टन चेरी पैदा होती है, इसमें 70 से 80 फीसदी चेरी शिमला जिले में होती है। चेरी का सालाना 150 से 200 करोड़ का कारोबार होता है।
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