
खबर अभी अभी ब्यूरो सोलन

जानकारी के अनुसार, इस बिल पर चर्चा के लिए बुधवार को सुबह 11 से शाम 6 बजे तक का समय अलॉट किया गया है। इस बिल पर 7 घंटे तक चर्चा होगी। इस बिल को लेकर महिलाओं में उत्साह है। संसद के नए भवन में देश की जानी-मानी महिलाओं को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। इस बिल में लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है।
उल्लेखनीय है कि सोमवार की शाम को मोदी कैबिनेट की बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी भी दे दी गई है। बता दें कि लगभग 27 साल से ज्यादा समय से लंबित चल रहे महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की मांग विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से संसद के विशेष सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक में भी की गई थी।
क्या है महिला आरक्षण विधेयक?
- महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों को आरक्षित हो जाएंगी।
- इस बिल के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें एससी-एसटी समुदाय से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी।
- इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है।
- लैंगिक समानता और समावेशी सरकार की ओर उठाए जा रहे जरूरी कदमों के बावजूद महिला आरक्षण विधेयक लंबे समय से संसद में लंबित है। 2010 में ही इस बिल को राज्यसभा से पारित किया जा चुका था, लेकिन अब तक लोकसभा में पेश नहीं किया जा सका।
- महिला आरक्षण बिल के अनुसार, महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण 15 साल के लिए ही होगा।
- संसद सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक दलों के कई नेताओं ने महिलाओं के लिए आरक्षण पर जोर दिया।
जानिए बिल को लेकर कब, क्या क्या हुआ
गौरतलब है कि महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है। उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था। लेकिन पारित नहीं हो सका था। यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा। इस वजह से बिल पारित नहीं हो सका। वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की। लेकिन सफल नहीं हुई।
बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था। लेकिन यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया।
क्योंकि इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं। यह दोनों दल यूपीए सरकार का हिस्सा थे। कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है।
साल 2014 में सत्ता में आई बीजेपी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इस बिल की तरफ़ ध्यान नहीं दिया। हालांकि उसने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणा पत्र में 33 फ़ीसदी महिला आरक्षण का वादा किया है। इस मुद्दे पर उसे मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का भी समर्थन हासिल है
हालांकि साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया। लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा था। नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में इस बिल को पेश करने का मन बनाया है। ऐसे में अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश किया गया है।
अगर यह बिल लोकसभा से पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा। अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा। इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी।





