

मूरंग, किन्नौर: विकसित कृषि संकल्प अभियान–2025 के अंतर्गत, डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र किन्नौर द्वारा ऊंचाई वाले दुर्गम क्षेत्रीय गाँव मूरंग में उच्च तकनीक फलों की खेती पर जागरूकता और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस ऊँचाई पर बसे जीवंत गाँव में हुए इस कार्यक्रम में सेब उत्पादक किसानों, स्थानीय स्कूल के छात्रों, ग्राम पंचायत सदस्यों तथा सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के अधिकारियों और जवानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। यह कार्यक्रम आईटीबीपी के डिप्टी कमांडेंट अंकुश के सहयोग से आयोजित किया गया, जिन्होंने भारत के सबसे दूरस्थ हिमालयी क्षेत्रों में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में सिविल समुदायों और सुरक्षा बलों के बीच सहभागिता को महत्वपूर्ण बताया।
इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डॉ. प्रमोद शर्मा ने पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती की अत्यावश्यकता पर बल दिया और कहा कि यह न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक है, बल्कि किसानों की आजीविका सुरक्षा का भी माध्यम है। उन्होंने बताया कि मूरंग के 50 से अधिक किसान निरंतर रूप से प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं, जो कि क्षेत्र के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है। कीट विज्ञानी डॉ. बुद्धि राम नेगी ने किसानों को मिट्टी आधारित मधुमक्खी पालन तकनीक से अवगत कराया, जो पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए परागण और शहद उत्पादन को बढ़ावा देती है। वहीं पादप रोग विशेषज्ञ डॉ. डी.पी. भंडारी ने रसायनों के अति प्रयोग के बिना सेब बागवानी में रोग नियंत्रण की आधुनिक तकनीकों पर मार्गदर्शन दिया। बागवानी विभाग एवं कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण के अधिकारियों ने किसानों को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी।
ग्राम पंचायत प्रधान अनूप नेगी ने कृषि विज्ञान केंद्र की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि हमारे किसान अब केवल उत्पादक नहीं, बल्कि इस भूमि के संरक्षक बन चुके हैं। प्राकृतिक खेती ने हमारी मिट्टी को पुनर्जीवित किया है और बाहरी संसाधनों पर निर्भरता घटाई है और स्थानीय अर्थतंत्र को मजबूत किया है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सहभागिता और तकनीकी सहयोग अगर ऐसे ही जारी रहे, तो मूरंग शीघ्र ही एक आदर्श प्राकृतिक खेती गाँव के रूप में स्थापित होगा। इस अवसर पर सेब उत्पादक लोकेन्दर, जो पिछले एक दशक से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, ने बताया कि इससे उनकी मिट्टी की उर्वरता में सुधार, फल की गुणवत्ता में वृद्धि और उत्पादन लागत में कमी देखने को मिली है। कार्यक्रम का समापन एक प्रेरणादायक संकल्प के साथ हुआ, जिसमें किसानों ने यह दृढ़ निश्चय व्यक्त किया कि वे पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने और प्रचार करने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे, ताकि मूरंग गाँव आने वाले वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक खेती का आदर्श केंद्र बन सके।



