# मंडी महाशिवरात्रि: राजदेवता माधोराय की अगुवाई में धूमधाम से निकली दूसरी जलेब, देव ध्वनियों से गूंजी छोटी काशी |

खबर अभी अभी ब्यूरो सोलन

22 फरवरी 2023

शिवरात्रि महोत्सव की दूसरी जलेब

मंडी महाशिवरात्रि महोत्सव की दूसरी जलेब राजदेवता माधोराय की अगुवाई में धूमधाम से निकाली गई। माधोराय की पालकी के साथ देवी-देवताओं के रथों के आगे नाचते-गाते  देवलू और वाद्य यंत्रों की धुनों से मौहाल भक्तिमय हुआ। बुधवार दोपहर 2:30 बजे राजदेवता माधोराय के दरबार से जलेब शुरू हुई। इससे पहले मेला समिति की ओर से उपायुक्त कार्यालय परिसर में मुख्य अतिथि सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर व अन्य अतिथियों को पगड़ी पहनाई गई।

माधोराय की पूजा-अर्चना करने के बाद परंपरा के अनुसार जलेब निकाली गई। देव रथों के साथ झूमते देवलू और वाद्य यंत्रों की धुनों से छोटी काशी भक्तिमय हो उठी। मुख्य संसदीय सचिव  पैदल चल कर जलेब के साथ सेरी बाजार होकर महामृत्युंजय चौक से नए सुकेती पुल, आईटीआई चौक, कॉलेज रोड होते हुए पड्डल मैदान पहुंचे। जलेब में सबसे आगे पुलिस के घुड़ सवार, पुलिस और होमगार्ड बैंड, पुलिस जवान, महिला पुलिस मार्च पास करते हुए चले। जलेब में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।

मंडी शिवरात्रि।

इसके बाद देव रथों में सबसे आगे बालीचौकी क्षेत्र के देवता छानणू-छमाहूं के साथ देवलू वाद्य यंत्रों पर नाचते-गाते चले।
इसके बाद देव घटोत्कच कोटलू और महर्षि  मार्कंडेय सराज, देवी अंबिका, शैटी नाग, मगरू महादेव, चपलांदू नाग, बायला नारायण, लक्ष्मी नारायण, बिठ्ठू नारायण, ब्रह्म देव तुंगासी, महामाया, चुंजुवाला, देवी नाऊ की अंबिका के देव रथ ने जलेब में शिरकत की।
इसके बाद राज माधोराय की पालकी और शुकदेव ऋषि शारटी और थट्टा, देव सरीहटू, झाथीवीर, गणपति, टूटीवीर, आदि देवताओं के रथ जलेब में शामिल हुए। दूसरी जलेब देखने के लिए शहर के लोग बड़ी संख्या में सेरी चानणी की पौड़ियों, सेरी मंच, गांधी चौक, इंदिरा बाजार की छत व महामृत्युंजय चौक से कॉलेज रोड़ के दोनों तरफ खड़े रहे।
मंडी सदर क्षेत्र की स्नोर घाटी स्थित नाऊ गांव की माता अंबिका का रियासतकाल से ही मंडी शिवरात्रि महोत्सव में अहम स्थान माना गया है। हर वर्ष माता का रथ अपने देवलुओं व कारदारों सहित शिवरात्रि मेला पहुंच कर राजबेहड़े में अन्य देवी-देवताओं के साथ रात्रि ठहराव करता है। माता के कारदार रोशन लाल शर्मा ने बताया कि माता अंबिका नाऊ का रथ रियासतकाल से ही जलेब में माधोराय से आगे चलती हैं और पड्डल मैदान पहुंच कर पड्डल चानणी में बैठ कर श्रद्घालुओं को दर्शन देती हैं।
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