
भारतीय राज्यों में हिमाचल प्रदेश का ऋण-जीएसडीपी अनुपात पांचवां सबसे अधिक है। वित्त वर्ष 2024-25 में राज्य का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 2.27 लाख करोड़ अनुमानित रहा है। यह देश में 9वां लघुतम है। हालांकि, प्रति व्यक्ति आधार पर यह बारहवां सबसे बड़ा राज्य है। यहां करीब लगभग 53,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक व्यय और जीएसडीपी का 4.7 प्रतिशत राजकोषीय घाटा हो रहा है। इसका सार्वजनिक ऋण रुपये 95,000 करोड़ अनुमानित है। यह खुलासा यूएनडीपी के सहयोग से जलवायु परिवर्तन को मद्देनजर रखकर तैयार की हिमाचल प्रदेश मानव विकास रिपोर्ट 2025 में हुआ है।
इस रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था जलवायु संवेदनशील और उत्सर्जन गहन क्षेत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है। अकेले 2023 के मानसून सीजन में 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ जिससे घर, सड़कें और फसलें नष्ट हो गईं। 2025 के मानसून ने जून और अगस्त की शुरुआत के बीच तक ही 1,700 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो गया, जिसमें 42 अचानक बाढ़, 25 बादल फटने और 32 भूस्खलन शामिल हैं। ऐसे में जलवायु-जनित नुकसान और क्षति का सामना करने के लिए वित्तीय संसाधनों में तत्काल वृद्धि की जरूरत है।
जलवायु प्रभावों के युग में मानव, वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ा
जलवायु प्रभावों के इस युग में मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। प्राकृतिक आवासों को बाधित करके तेंदुए, हिमालयी भूरे भालू और एशियाई काले भालू जैसी प्रजातियों को मानव बस्तियों के करीब आने के लिए मजबूर किया है। बढ़ता तापमान, बदला वर्षा का ट्रेंड और वनों की कटाई इनके प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रही है। खासकर कुल्लू और चंबा जैसे वन क्षेत्रों में 2022-27 और 2024 की भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के अध्ययन से पता चलता है कि सर्वे किए गए 49.5 प्रतिशत क्षेत्र अब संघर्ष के हॉट स्पॉट हैं।
19 तेंदुए और काले भालू क्रमवार 30.85 और 18.65 प्रतिशत संघर्षों के लिए जिम्मेदार हैं, जो मुख्य रूप से पशुधन यानी 83.79 प्रतिशत भेड़ और बकरियों पर हमला करते हैं। मानव को चोट पहुंचाते हैं। खासकर मंडी, कांगड़ा और बिलासपुर में स्थिति खराब है। हिमालयी भूरे भालू भी लाहौल घाटी में कृषि भूमि को भोजन के स्रोत के रूप में उपयोग करते पाए गए हैं। 20 ऐसी मुठभेड़ों के परिणामस्वरूप शारीरिक नुकसान, आर्थिक नुकसान, मनोवैज्ञानिक आघात और रेबीज जैसी जूनोटिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। चंबा के किसानों और किन्नौर के पशुपालकों सहित ग्रामीण समुदायों को स्वास्थ्य सेवा की सीमित पहुंच के कारण अत्यधिक असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य को भी खराब कर रहीं आपदाए
इस रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाएं ग्रामीण आबादी के मानसिक स्वास्थ्य को भी खराब कर रही है, जिनमें मंडी के किसान भी शामिल हैं। ये नियमित रूप से फसल के नुकसान से जूझते हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि कुल्लू में भूस्खलन जैसी लगातार जलवायु आपदाएं निवासियों में तनाव और अभिघातज के बाद के तनाव विकारों को बढ़ाती हैं। किन्नौर के पशुपालक हिमस्खलन के कारण पशुधन के नुकसान का सामना करते हैं। लाहौल स्पीति क्षेत्र में पिघलते ग्लेशियर पानी की उपलब्धता को कम कर रहे हैं।





