
शिमला : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के लोअर बाजार में बढ़ते अतिक्रमण, आग के खतरे और जनसुविधाओं की कमी को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने नगर निगम शिमला को निर्देश दिए हैं कि वह न केवल रेहड़ी-फड़ी वालों (तहबाजारियों) पर, बल्कि उन दुकानदारों पर भी कार्रवाई करे जो अपनी दुकानों के आगे सरकारी जमीन पर कब्जा जमाए बैठे हैं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जियालाल भारद्वाज की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि इसके लिए केवल वेंडर ही दोषी नहीं हैं, बल्कि दुकानदार भी इसमें शामिल हैं। कोर्ट को जानकारी मिली है कि दुकानदार अनाधिकृत रूप से अपनी दुकान के आगे लोगों को बैठने की अनुमति देते हैं और बदले में उनसे पैसे वसूलते हैं। कोर्ट ने कहा कि इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
नगर निगम को ऐसे दुकानदारों के खिलाफ भी कार्रवाई की खुली छूट दी गई है। कोर्ट ने चिंता जताई कि लोअर बाजार का क्षेत्र बेहद तंग और भीड़भाड़ वाला है। यहां की इमारतें 150 साल से अधिक पुरानी हैं और लकड़ी की बनी हैं। ऐसे में अगर आग लगती है, तो यह एक बड़ी आपदा को निमंत्रण होगा। आपातकालीन वाहनों की आवाजाही के लिए क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखना अनिवार्य है। कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि लोअर बाजार में पानी, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और पर्यटकों के लिए बेंच, कचरा उठाने की व्यवस्था और आपातकालीन वाहनों के लिए पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। अदालत ने प्रशासन को इन समस्याओं का समाधान तलाशने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने पुलिस प्रशासन को आदेश दिया है कि वह क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त रखने के लिए नगर निगम को आवश्यक सहायता प्रदान करे।मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च 2026 को होगी। अदालत ने यह आदेश 2014 में दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिए।
लोअर बाजार को नो-वेंडिंग जोन घोषित करने के खिलाफ दायर आवेदन वापस
हाईकोर्ट में नगर निगम की ओर से लोअर बाजार में अतिक्रमण से संबंधित की गई कार्रवाई को लेकर तहबाजारी संगठन ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर आपत्तियां जताई थी। संगठन की ओर से पेश अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि लोअर बाजार राष्ट्रीय बाजार है। प्रशासन जिस तरह से कार्रवाई कर रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब लोग जो सामान बेचते हैं, उन पर पड़ रहा है। तहबाजारी एसोसिएशन ने प्रशासन की ओर से लोअर बाजार को नो-वेंडिंग जोन घोषित करने की कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी। हालांकि, सुनवाई के दौरान कुछ तकनीकी कमियां सामने आई। इन खामियों को देखते हुए अधिवक्ता ने अदालत से आवेदन वापस लेने की अनुमति मांगी। उन्होंने प्रार्थना की कि एसोसिएशन को भविष्य में उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत नया मामला दायर करने की स्वतंत्रता दी जाए,जिसे अदालत ने स्वीकार कर दिया। अदालत ने संगठन को नए सिरे से नो-वेंडिंग जोन घोषित करने की कार्रवाई को चुनौती देने की छूट दी है।
20 साल से कार्यरत माली को नियमित करने के दिए आदेश
हाईकोर्ट ने 20 साल से कार्यरत माली को नियमित करने के दिए आदेश दिए हैं। अदालत ने फैसले में कहा कि यदि कोई कर्मचारी सरकारी संस्थान में लंबे समय से सेवाएं दे रहा है तो उसका वेतन किस फंड से आ रहा है, यह उसकी नियमितीकरण की पात्रता को रोकने का आधार नहीं हो सकता। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता का दावा खारिज किया गया। अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को 8 वर्ष की निरंतर सेवा पूरी करने के बाद माली के पद पर नियमित किया जाए।
याचिकाकर्ता ने अदालत आने में देरी की, इसलिए 9 साल का पिछला बकाया नहीं मिलेगा, लेकिन इस अवधि को वरिष्ठता और अन्य लाभों के लिए गिना जाएगा। वित्तीय लाभ याचिका दायर करने की तिथि से 3 वर्ष पूर्व से देय होंगे। अदालत ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पिछले 20 वर्षों से सरकारी संस्थान की देखरेख में काम कर रहा है। इतने लंबे समय तक सेवा लेने के बाद उसे नियमित न करना शोषण के समान है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वेतन चाहे पीटीए फंड से दिया गया हो या सरकारी खजाने से कर्मचारी की सेवा सरकारी संस्थान के लिए थी। अदालत ने पूर्व में सैनी राम बनाम हिमाचल राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि केवल वेतन का स्रोत नियमितीकरण तय नहीं कर सकता। याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार वर्तमान में राजकीय डिग्री कॉलेज देहरी कांगड़ा में माली के पद पर कार्यरत हैं।





