

शिमला में कुत्तों के हमलों से हर महीने 184 लोग लहूलुहान हो रहे हैं। चिंताजनक यह है कि कुत्ते अब इतने आक्रामक हो रहे हैं कि लोगों को गहरे घाव देने लगे हैं।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में कुत्तों के हमलों से हर महीने 184 लोग लहूलुहान हो रहे हैं। चिंताजनक यह है कि कुत्ते अब इतने आक्रामक हो रहे हैं कि लोगों को गहरे घाव देने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला की ओर से शिमला शहर में कुत्तों के बढ़ते आतंक पर किए शोध में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। साल 2021-22 में प्रदेश विश्वविद्यालय के दूरवर्ती शिक्षण संस्थान इक्डोल के सहायक प्रोफेसर डॉ. दीपक शर्मा और रिसर्च स्कॉलर बेगीराम ने कुत्तों पर शोध किया था। रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में शिमला के अस्पतालों में कुत्तों के काटने के 1870 मामले आए थे।
1139 में से सिर्फ 199 मामले ऐसे थे जिनमें कुत्ते के हमले से पीड़ितों को हल्की खरोंचे आईं। 940 मामले ऐसे थे जिनमें पीड़ितों के शरीर पर कुत्तों के काटने से गहरे घाव पड़ गए थे। यह दर्शाता है कि कुत्ते आक्रामक हमले कर रहे हैं। बाकी बचे 740 मामलों की पुख्ता रिपोर्ट नहीं मिली है। शोध रिपोर्ट में जनवरी 2021 से अप्रैल 2022 तक शिमला में कुत्तों के काटने के मामलों पर भी रिपोर्ट दी है। इन 16 महीने के भीतर 2951 लोगों को कुत्तों ने काटा। इसमें शहर से सटे इलाकों के वह लोग भी शामिल हैं जो कुत्तों को काटने के बाद यहां के अस्पतालों में टीके लगवाने पहुंचे थे। लावारिस के अलावा पालतू कुत्तों के काटने के मामले भी इसमें शामिल हैं।
नसबंदी-कचरा प्रबंधन फेल होने से बढ़ा आतंक
रिपोर्ट के अनुसार कुत्तों के आतंक बढ़ने के कई कारण दिए हैं। इनमें शहर में कुत्तों की नसबंदी अभियान के फेल होने को भी बड़ा कारण माना है। साल 2006 में शुरू हुआ यह अभियान 2011 में अचानक बंद हो गया। काफी साल यह अभियान बंद रहा। नगर निगम के पास कुत्तों का सटीक आंकड़ा भी नहीं है। आज तक शहर में इनकी गणना नहीं हुई। शहर में कचरा प्रबंधन सही न होना, लोगों के नसबंदी अभियान में सहयोग की कमी, फीडिंग सेंटर चिह्नित न होना भी कुत्तों की संख्या बढ़ा रहा है। शहर में कुत्तों के काटने की सूचना देने के लिए कोई स्पेशल हेल्पलाइन सेवा तक नहीं है।
नगर निगम के पास डॉक्टर तक नहीं
शहर में लावारिस कुत्तों का आतंक चरम पर है। नगर निगम राहत दिलाना तो दूर, इनकी नसबंदी तक नहीं करवा पा रहा। निगम में कुत्तों की नसंबदी के लिए एक डॉक्टर तक नहीं है। एक महीने से डॉक्टरों के पद खाली हैं। निगम ने पशुपालन विभाग से छह डॉक्टर मांगें थे लेकिन विभाग ने डॉक्टर की तैनाती करना तो दूर, निगम में नियुक्त डॉक्टर एवं वीपीएचओ का भी तबादला कर दिया। अब शहर में कुत्तों की नसबंदी तक नहीं हो रही। नगर निगम महापौर सुरेंद्र चौहान के अनुसार इस बारे में सरकार से बात की है। जल्द डॉक्टर की तैनाती की जाएगी।
मुआवजा तक नहीं, राहत के नाम पर सिर्फ नसबंदी
नगर निगम, जिला प्रशासन और सरकार राजधानी में बढ़ते कुत्तों-बंदरों के आतंक से जनता को राहत नहीं दिला पा रहे। हमले के बाद जब लोग शिकायत करते हैं तो नगर निगम और वन विभाग की टीमें सिर्फ नसबंदी के लिए कुत्तों-बंदरों को पकड़ती है। यदि पहले ही इनकी नसबंदी हो चुकी है तो इन्हें पकड़ा तक नहीं जाता। यदि कोई बंदर या कुत्ता बार-बार हमला कर रहा है तो उसे पकड़कर दस दिन निगरानी में रखते हैं। इसके बाद वापस उसी जगह छोड़ते हैं, जहां से इसे उठाया हो। इसके पीछे नगर निगम और वन विभाग नियमों का हवाला देते हैं। इन जानवरों के लिए बनाए नियम इतने सख्त हैं कि नसबंदी के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता। पहले वन विभाग बंदरों के काटने पर मुआवजा देता था। लेकिन अब सिर्फ निशुल्क टीके लगते हैं।


