हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एसपीयू के सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति को किया रद्द, जानें पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी में सहायक प्रोफेसर जूलॉजी के पद पर की गई नियुक्ति को रद्द कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने विश्वविद्यालय को प्रतीक्षा सूची में अगले योग्य उम्मीदवार को नियुक्ति देने का निर्देश दिया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने पाया कि चयनित उम्मीदवार को गलत तरीके से अतिरिक्त अंक दिए गए थे, जिससे वह साक्षात्कार के लिए योग्य बन गई थी। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि सहायक प्रोफेसर ने 2004 से 2008 के बीच जिस अनुभव प्रमाण पत्र का दावा किया था, उस समय उसके पास सहायक प्रोफेसर बनने के लिए आवश्यक योग्यता नहीं थी। इसलिए इस अवधि के अनुभव के लिए अंक नहीं दिए जा सकते थे।

अदालत ने इटरनल यूनिवर्सिटी के अनुभव प्रमाणपत्रों पर भी गंभीर संदेह व्यक्त किया है। अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के चयन पैनल ने इन प्रमाणपत्रों का सत्यापन कैसे किया, जबकि इटरनल यूनिवर्सिटी के खुद पहले आरटीआई के जवाब में कहा गया था कि उनके पास नियुक्त सहायक प्रोफेसर से संबंधित कोई रिकॉर्ड नहीं है। बाद में यह बताया गया कि रिकॉर्ड 2022 की बाढ़ में नष्ट हो गए थे, जबकि चयन प्रक्रिया जून 2022 में हुई थी। अदालत ने प्रतिवादियों के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि चयन केवल साक्षात्कार के प्रदर्शन पर आधारित था।

याचिका में चयनित उम्मीदवार की योग्यता और अनुभव प्रमाणपत्रों पर गंभीर आरोप लगाए। पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इटरनल यूनिवर्सिटी की ओर से जारी अनुभव प्रमाणपत्र जाली हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी से पता चला है कि इटरनल यूनिवर्सिटी ने खुद इस बात से इन्कार किया है कि चयनित उम्मीदवार ने उनके साथ काम किया। उन्होंने चयनित सहायक प्रोफेसर के पति पर भी आरोप लगाए हैं, जो एक प्रतिष्ठित पद पर हैं। विश्वविद्यालय ने बताया कि उनके प्राणी शास्त्र विभाग की स्थापना ही 2015 में हुई थी और उस दौरान बीएसई या एमएससी की कक्षा ही नहीं चलती थी।

वहीं, प्रतिवादी की ओर से इन आरोपों का खंडन किया गया। उनका कहना है कि आरटीआई के तहत मिली जानकारी गलत है। उन्होंने कहा कि बाढ़ में रिकॉर्ड नष्ट होने के बाद पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी। विश्वविद्यालय ने अपने जवाब में कहा कि अनुभव के लिए 10 अंक दस्तावेजों की पुष्टि के बाद ही दिए गए थे और चयन प्रक्रिया में प्रतिवादी के पति की कोई भूमिका नहीं थी। अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय का जवाब गोलमोल है और यह स्पष्ट नहीं है कि अनुभव प्रमाणपत्र का सत्यापन कैसे किया गया था। न्यायालय ने यह भी नोट किया कि प्रतिवादी ने 2008 में एमफिल की डिग्री प्राप्त की, इसलिए उनका 2004 से 2008 तक अनुभव सहायक प्रोफेसर पद के लिए नहीं गिना जा सकता, क्योंकि उस समय उनके पास आवश्यक योग्यता नहीं थी। यह याचिका वर्ष 2023 में दायर की गई थी।

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