हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा- पदोन्नति, पात्रता तय करना राज्य सरकार का क्षेत्राधिकार

शिमला | हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी संघ की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है। कहा कि सेवा से संबंधित योग्यता, पात्रता मानदंड और पदोन्नति के अवसरों सहित अन्य शर्तों को प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार समय-समय पर जोड़ना/घटाना या बदलना राज्य सरकार का क्षेत्राधिकार है। अदालत ने कहा कि राज्य के किसी भी कर्मचारी को यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं है कि उसकी सेवा की शर्तों को नियंत्रित करने वाले नियम हमेशा सभी उद्देश्यों के लिए वही होने चाहिए, जब सेवा में प्रवेश किया था।

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कहा कि पदोन्नति एक मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, कर्मचारियों की सेवा को नियंत्रित करने वाले नियमों के संदर्भ में ही पदोन्नति पर विचार किया जा सकता है। अदालत प्रावधानों के नियमों के खिलाफ तब तक कोई आदेश जारी नहीं कर सकती, जब तक कि यह प्रावधान असांविधानिक, मनमाने व अवैध न हों। याचिकाकर्ता राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी संघ ने याचिका में मांग की थी कि बैंक की ओर से 21 जनवरी 2025 को जारी संशोधित अधिसूचना रद्द की जाए। बैंक के सेवारत कर्मचारी के संबंध में अधिसूचना को अगले कैडर में उनकी पदोन्नति के उद्देश्य से लागू न करने का भी निवेदन किया था।

याचिकाकर्ता के अनुसार रजिस्ट्रार सहकारी समिति हिमाचल प्रदेश ने दिनांक 21 अक्तूबर 2024 के आदेश पारित किया गया था। इसके तहत एचपी राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी (रोजगार की शर्तें और काम करने की स्थिति) नियम, 1979 के नियम 7, 19 (बी), 21, 22, 23, 33, 34 और 61 में संशोधन करने की मंजूरी दी है, जिसने कर्मचारियों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा किया है। ऊपर से नीचे तक प्रत्येक ग्रेड में पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। खंडपीठ ने कहा कि जो व्यक्ति अभी तक कैडर का हिस्सा नहीं हैं, वे अपने प्रवेश से पहले लागू की गई नीतियों के आधार पर अधिकारों का दावा नहीं कर सकते।

हिमाचल हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि संशोधित करना राज्य की क्षमता के भीतर है। इसी तरह राज्य विभागों को मिलाने, वर्गीकरण, विभाजन, पुनर्गठन और पदों की विभिन्न श्रेणियों का गठन करने का हकदार है। सरकार की  ओर से महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि उच्च शैक्षणिकता, योग्यता की एक उच्च डिग्री आंतरिक रूप से कुछ कौशल लाएगी और  किए जा रहे काम के साथ घनिष्ठ संबंध रखेगी।

चुनौती देने का अधिकार नहीं
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि सेवा के पैटर्न, कैडर और श्रेणी को पुनर्गठित करना, पदों को समाप्त करके नए कैडर/पदों का सृजन करना भी राज्य का काम है। किसी सरकारी कर्मचारी को मौजूदा सेवा से संबंधित नए नियमों को संशोधित करने, बदलने और लागू करने के राज्य के अधिकार को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। कोर्ट यह सुझाव नहीं दे सकता कि नियोक्ता को प्रशासन की कार्यकुशलता में सुधार के उद्देश्य से कैडर की संरचना किस प्रकार करनी चाहिए या उनका पुनर्गठन कैसे करना चाहिए।
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