

शिमला | हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी संघ की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया है। कहा कि सेवा से संबंधित योग्यता, पात्रता मानदंड और पदोन्नति के अवसरों सहित अन्य शर्तों को प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार समय-समय पर जोड़ना/घटाना या बदलना राज्य सरकार का क्षेत्राधिकार है। अदालत ने कहा कि राज्य के किसी भी कर्मचारी को यह दावा करने का कोई अधिकार नहीं है कि उसकी सेवा की शर्तों को नियंत्रित करने वाले नियम हमेशा सभी उद्देश्यों के लिए वही होने चाहिए, जब सेवा में प्रवेश किया था।
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने कहा कि पदोन्नति एक मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, कर्मचारियों की सेवा को नियंत्रित करने वाले नियमों के संदर्भ में ही पदोन्नति पर विचार किया जा सकता है। अदालत प्रावधानों के नियमों के खिलाफ तब तक कोई आदेश जारी नहीं कर सकती, जब तक कि यह प्रावधान असांविधानिक, मनमाने व अवैध न हों। याचिकाकर्ता राज्य सहकारी बैंक कर्मचारी संघ ने याचिका में मांग की थी कि बैंक की ओर से 21 जनवरी 2025 को जारी संशोधित अधिसूचना रद्द की जाए। बैंक के सेवारत कर्मचारी के संबंध में अधिसूचना को अगले कैडर में उनकी पदोन्नति के उद्देश्य से लागू न करने का भी निवेदन किया था।



