हिमाचल: 980 ड्राइंग मास्टरों के नियुक्ति पत्र पर रोक लगाने से हाईकोर्ट का इन्कार, जानें पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पोस्ट कोड 980 के चयनित ड्राइंग टीचरों को नियुक्तिपत्र जारी करने पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने हालांकि स्पष्ट किया है कि यह नियुक्तियां याचिका के अंतिम निपटारे पर निर्भर करेंगी। न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की अदालत ने इस मामले में चार सप्ताह के भीतर सरकार को अपना जवाब दायर करने को कहा है। अदालत ने जांच एजेंसी की रिपोर्ट के मद्देनजर पाया कि कदाचार केवल एक विशिष्ट मामले तक सीमित है, जिसमें उम्मीदवार सुनीता देवी शामिल हैं। इसमें कथित तौर पर उमा और निखिल आजाद ने मदद की है। इस मामले में दागी उम्मीदवारों को बाकी से अलग करना संभव है क्योंकि कोई सबूत अन्य उम्मीदवारों के बीच व्यापक अनियमितताओं का संकेत नहीं देता है।

प्रोफेसर की अनिवार्य सेवानिवृत्त के आदेश बरकरार
प्रदेश हाईकोर्ट ने कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य की अदालत ने कहा कि अधिकारियों के बार-बार आदेशों की अवहेलना को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह प्रतिवादी विश्वविद्यालय जैसे सार्वजनिक संस्थान में अनुशासनहीनता और अव्यवस्था को जन्म देगा। न्यायालय ने अभिलेखों की जांच के दौरान पाया कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में कुछ भी अवैध नहीं है। जांच विश्वविद्यालय के सेवा नियमों के अनुसार की गई। याचिकाकर्ता को अपना बचाव करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया था। याचिकाकर्ता कृषि विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष थे। उनके खिलाफ शिकायतें मिलने के बाद विभागीय जांच के आदेश दिए गए। पहली जांच के बाद उन्हें विभागाध्यक्ष के रूप में बहाल कर दिया गया। हालांकि, विश्वविद्यालय के कुलपति जांच से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि यह फैक्ट फाइंडिंग अधिकारी की ओर से नहीं की गई थी। इसके बाद एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया। उन्होंने नई जांच की और याचिकाकर्ता को फिर से उनके पद से हटाया गया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हिमाचल प्रदेश राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन दायर किया। हालांकि जांच हो चुकी थी। न्यायाधिकरण ने उस पर रोक लगा दी थी, इसलिए कोई प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद विश्वविद्यालय ने स्थगन आदेश स्टे आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया।

न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि उसने विश्वविद्यालय को याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने से नहीं रोका था। इसके चलते नियमित जांच की गई और उसके निष्कर्षों को प्रबंधन बोर्ड के समक्ष रखा गया। इसके आधार पर याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने का प्रस्ताव करते हुए नोटिस जारी किया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के समक्ष एक अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद समीक्षा याचिका भी दायर की, जिसे कुलाधिपति ने खारिज कर दिया गया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। इसमें पद की बहाली और सभी परिणामी लाभों की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक जांच अनुचित थी, क्योंकि कुलपति के पास प्रबंधन बोर्ड की पूर्व स्वीकृति के बिना कार्यवाही शुरू करने या जांच अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि आरोप साबित नहीं हुए थे और यदि उन्हें सच भी मान लिया जाए तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा कथित कदाचार के लिए अत्यधिक और असंगत थी। वहीं विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के अनुरोध उनके लंबे सेवा रिकॉर्ड और पारिवारिक प्रतिबद्धताओं पर विचार करने के बाद बर्खास्तगी की मूल सजा को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदल दिया था। हिमाचल प्रदेश कृषि, बागवानी और वानिकी विश्वविद्यालय अधिनियम, 1986 की धारा 48 के तहत प्रबंधन बोर्ड को कुलपति को शक्तियां सौंपने का अधिकार देती है।

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