हिमालय क्षेत्रों के विकास की नीतियां टेबलों पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर होनी चाहिए तैयार

#खबर अभी अभी सोलन ब्यूरो*

21 दिसंबर 2022

आपदा से निपटने के लिए गांव-गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता है। यह बात पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले सेवा इंटरनेशनल प्रोजेक्ट के प्रबंधक उत्तराखंड निवासी मनवर सिंह रावत ने कही। मनवर सिंह रावत उत्तराखंड में हुई 2013 और 21 की त्रासदी के साक्षी हैं। 2013 में ही वह सेवा इंटरनेशनल संस्था से जुड़े थे। उनका कहना कि हिमालय क्षेत्रों के विकास की नीतियां टेबलों पर नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर तैयार होनी चाहिए। इसमें स्थानीय लोगों को जोड़कर पहाड़ों के संबंध में जानकारी हासिल करनी चाहिए। आपदा को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन उसे कम जरूर किया जा सकता है।

केदारनाथ में 2013 और 2021 त्रासदी को करीब से देखा है और साक्षी भी रहे हैं। 16 और 17 जून 2013 की भीषण आपदा में केदारनाथ और मंदाकिनी घाटी में हजारों लोग लापता हो गए थे। लापता होने वालों में उत्तराखंड, और पड़ोसी देश नेपाल समेत कई देशों के लोग शामिल थे, उस दौरान वे बीए की पढ़ाई कर रहे थे और वे इस दौरान केदार घाटी में रेस्क्यू ऑपरेशन का हिस्सा बने थे और इस त्रासदी का पहला वीडियो भी उन्होंने ही जारी किया था।

19 जून से रेस्क्यू ऑपेरशन शुरू हुआ था। आंखों के सामने लोग बह रहे थे, कुछ टनल में फंसे थे। कुछ को हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया। हादसे का तब पता चला जब एक हेलीकॉप्टर 17 जून को यात्रियों को लेकर आ रहा था। पायलट ने देखा कि चोरावली ताल ग्लेशियर आने से टूट चुका है और फ्लड में इतना फ्लड पानी आया था कि गौरीकुंड तक बर्बाद हो गया था। इसी तरह 7 फरवरी 2021 को तपोवन में ग्लेशियर आया था। वे उस दौरान उस क्षेत्र में काम करने गए थे वहां लोगों से उनकी एक मीटिंग थी। उसमें भी उनके द्वारा रेस्क्यू ऑपेरशन किया गया, लोग सुरंग में दबे पड़े थे।

#खबर अभी अभी सोलन ब्यूरो*

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