हिंदू बोनदेर आर भाईदेर नवोवर्षेर शुभेच्छा (हिंदू बहनों और भाइयों को नव संवत्सर की शुभकामनाएं)…उत्तर बंगाल यानी पहाड़ के प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी के दाबग्राम इलाके में तृणमूल कांग्रेस की रैली में अपने भाषण की शुरुआत मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कुछ यूं करती हैं। यह क्षेत्र जलपाईगुड़ी लोकसभा क्षेत्र में आता है, जहां हिंदू और गोरखाली वोटर बहुमत में हैं और भाजपा के समर्थक भी। यहां से पिछला चुनाव भाजपा जीती थी।
सोनार बांग्ला पर यह नई चमकीली परत है-धर्म की राजनीति की। धरम-करम को धतकरम मानने वाले वामपंथियों की 34 साल तक कायम रही अखंड सत्ता को उखाड़ फेंकने वाली मुख्यमंत्री की बदली बोली की वजह साफ है। भाजपा ने उन्हें अपनी पिच पर खेलने को मजबूर कर दिया है। यूं तो पिछले विधानसभा चुनाव से ही ममता की चाल-ढाल बदली है, लेकिन इस बार उन्हें नागरिकता कानून और संदेशखाली कांड के कारण हिंदू वोटरों के खिसकने का डर कहीं ज्यादा है। वे मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी छवि के और पुख्ता होने के नुकसान देख रही हैं। होली के बाद उनका यह बदला रंग और गाढ़ा नजर आ रहा है।
भाजपा को पिछले लोकसभा और तीन साल पहले के विधानसभा चुनाव में मिली बढ़त से ममता घबराई हैं। संभवत: इसी कारण बंगाली पहचान अब हिंदू पहचान की तरफ चल पड़ी है। दोनों सांस्कृतिक पहचान कहीं साथ हैं, तो कहीं इनका राजनीतिक टकराव भी है। लाल सलाम और इंकलाब की गूंज अब जयश्री राम और भारत माता की जय के जयघोष में परिवर्तित है। बदले बंगाल में धार्मिक शोभायात्राएं नई पहचान हैं। इनके असर की अनदेखी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि कभी जयश्री राम के नारे से चिढ़ने वाली ममता ने पहली बार चुनाव से ठीक पहले रामनवमी की छुट्टी घोषित कर दी है। पिछले पांच सालों में रामनवमी पर धूमधड़ाके से निकलने वाले जुलूसों ने माहौल बदला है।
बदले बंगाल में अब सरकारी खर्चे से मंदिर बन रहे हैं या उनका जीर्णोद्धार हो रहा है। नवरात्र में दुर्गा समितियों को कार्यक्रम के लिए सरकार से पैसा दिया जा रहा है। 143 करोड़ रुपये की सरकारी मदद से नव निर्मित जगन्नाथ धाम मंदिर का चुनाव से ठीक पहले अप्रैल में ही उद्घाटन करने का सरकार का इरादा था, इसके लिए युद्धस्तर पर काम भी किया गया। भाजपा इसकी तीखी आलोचना यह कहकर कर रही है कि करदाता के पैसे को ऐसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। ममता बनर्जी तो अब यह भी कहने लगी हैं कि मंदिर बनवाने में हम भाजपा से आगे हैं। इसे सरकारी इच्छा भी कह सकते हैं कि पिछले साल नवंबर में आयोजित बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कोलकाता के मशहूर कालीघाट मंदिर के जीर्णोद्धार की घोषणा कर दी।
भाजपा इस खेल में उससे आगे निकलना चाहती है। संदेशखाली प्रकरण के जरिए भाजपा तुष्टीकरण के हथियार से ममता को घेर रही है। आदिवासी महिलाओं के शोषण और उनकी जमीन कब्जाने का मामला सामने आने के बाद ममता ने अपनी पार्टी के नेता शाहजहां शेख का पहले जैसा बचाव किया, उससे भाजपा को मौका मिल गया। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, तो खासी फजीहत हुई और उन्हें डिफेंसिव होना पड़ा। भाजपा इसे महिला अस्मिता से खिलवाड़ का केस बनाकर भुनाने की कोशिश में लगी है, लेकिन सफलता मिलनी मुश्किल बताई जा रही है, क्योंकि महिलाएं ममता में खुद को मजबूत देखती हैं।
तृणमूल पार्टी का आधार मजबूत होने के बाद भी कुछ क्षेत्रों में कांग्रेस और कम्युनिस्ट का बड़ा जनाधार बना रहा। उनसे मुस्लिम वोट खींचने की जल्दबाजी में ममता ने कई ऐसे फैसले किए, जो उनके लिए फायदेमंद तो साबित हुए, लेकिन एक बड़े वर्ग में कसक पैदा हो गई। बाद में उन्हें इसका अहसास हुआ, तो उन्होंने भूल सुधारी। इमामों, मुअज्जिनों को सरकारी खजाने से पैसा देने की घोषणा के बाद उन्होंने पंडित-पुजारियों की भी सुध ली। लेकिन, तब तक भाजपा इसे भुना चुकी थी।
राज्य से मिटने के कगार तक पहुंच चुकी कांग्रेस को भी बचाव का रास्ता रामधुन ही दिख रहा है। शायद इसीलिए मुस्लिम बहुल दक्षिण मालदा लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार इसा खान चौधरी मंदिर-मंदिर माथा टेक रहे हैं। हालांकि कांग्रेसी नेता आरोप लगाते है कि मुस्लिमों को डराकर उनका वोट लेने के लिए ममता धर्म की राजनीति कर रही हैं। बहरहाल, ममता के बदले रुख का क्या असर रहता है, कितना फायदा होता है, जल्द पता चल जाएगा, लेकिन बदले सियासी माहौल में यह तो तय है कि दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विर्सजन के कार्यक्रम को मुहर्रम के जुलूस के कारण टालने जैसे फैसले अब आगे वे शायद ही कर सकें।