
विश्वभर में देव महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में करीब 450 करोड़ रुपये का कारोबार एक महीने में होता है। 1660 ईसवी से मनाए जा रहे कुल्लू दशहरा का आगाज देवी-देवताओं के आगमन से होता है। आजादी के बाद दशहरा का स्वरूप बदला और धीरे-धीरे कारोबार भी शुरू होने लगा। स्थानीय व्यापारियों के साथ-साथ चीन, रूस व तिब्बत के व्यापारी भी आने शुरू हुए। पिछले 35 साल में अस्थायी व्यापार का दायरा कई गुना बढ़ गया।
सात दिन तक मनाए जाने वाले कुल्लू दशहरा में व्यापार करीब एक माह तक चलता है। इसमें लगभग 10 से 12 लाख लोग परोक्ष रूप से भाग लेते हैं। इस बार कुल्लू दशहरा का बाजार सबसे अधिक 32 दिन तक सजेगा। बताया जा रहा है कि आपदा में हुए नुकसान को देखते हुए दशहरा उत्सव समिति ने व्यापारियों को राहत दी है। दशहरा में सबसे अधिक खरीद गर्म कपड़ों की होती है। इसमें जैकेट, कोट, स्वेटर के साथ रजाई, कंबल आदि शामिल हैं।
इसके अलावा दशहरा के अस्थायी बाजार में जूता मार्केट, कुल्लवी शॉल मार्केट, सिड्डू बाजार, मीना बाजार, बर्तन बाजार, झूला, डोम मार्केट, हलवाई मार्केट सजती है। स्थानीय हस्तशिल्प की खूब खरीदारी होती है। 90 के दशक के बाद दशहरा के अस्थायी बाजार में बड़ा बदलाव आया। 80 से 100 दुकानों की जगह अब 2,200 दुकानें हो गई हैं, जहां पर हर सामान आसानी से मिलता है। यही कारण है कि कुल्लू दशहरा के इस बाजार को एशिया की सबसे बड़ी अस्थायी मार्केट माना जाता है। यहां पर लोगों को सुई से लेकर गाड़ी तक मिल जाती है।
चीन, रूस और तिब्बत के व्यापारी भी आते थे मेले में
कुल्लू दशहरा उत्सव में 1962 तक चीन, रूस और तिब्बत के व्यापारी भी कारोबार के लिए आते थे। 1959 में चीन की ओर से तिब्बत पर कब्जे को लेकर विद्रोह के बाद तिब्बत के कारोबाारियों ने यहां आना बंद कर दिया। इसके बाद 1962 भारत-चीन युद्ध के बाद चीन के यारकंद और रूस के व्यापारियों ने भी दशहरा आने से किनारा कर दिया। तीन देशों के व्यापारी दशहरा में ऊन और पश्मीना बेचने लाते थे। -डाॅ. सूरत ठाकुर, इतिहासकार
देव परंपरा को निभाने के साथ खरीदारी भी
दशहरा में करीब 10 से 12 लाख लोगों की परोक्ष रूप से भागीदारी होती है। लोग दशहरा में देव परंपरा को निभाने के साथ-साथ खरीदारी भी करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक दशहरा के अस्थायी बाजार मेंं करीब 450 से 500 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस बार आपदा के चलते कारोबार में कमी हो सकती है। -लोकेश सिसोदिया, अर्थशास्त्री





