Himachal: हाईकोर्ट ने पीटीए शिक्षक की पेंशन में अनुबंध व अस्थायी सेवा भी गिनने के दिए आदेश

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पीटीए शिक्षक को पेंशन मामले में बड़ी राहत दी है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि पीटीए शिक्षक को पेंशन देने के लिए नियमितीकरण से पहले की अनुबंध और अवधि को भी कुल सेवा में शामिल किया जाए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने 17 वर्ष से अधिक समय तक लगातार सेवाएं दी हैं, इसलिए उन्हें पेंशन से वंचित करना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने राज्य सरकार के उस तर्क को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने पेंशन के लिए आवश्यक 10 वर्ष की नियमित सेवा पूरी नहीं की है। अदालत ने राज्य सरकार के पेंशन देने से इन्कार करने के निर्णय को भी रद्द करते हुए अधिकारियों को चार सप्ताह में मामले को निपटाकर पेंशन भुगतान के आदेश दिए हैं। अदालत ने यह फैसला ललित सेन बनाम राज्य सरकार मामले में सुनाया गया।

याचिकाकर्ता ने 2 जून 2007 को पीटीए के तहत एक स्वीकृत पद पर काम शुरू किया था। 20 अगस्त 2015 को उन्हें अनुबंध कर्मचारी बनाया गया और अगस्त 2020 में नियमित किया गया। 29 फरवरी 2024 को वे सेवानिवृत्त हुए, लेकिन राज्य सरकार ने पेंशन देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि पीटीए और अनुबंध अवधि को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता। याचिकाकर्ता ने अदालत में तर्क दिया कि उनकी प्रारंभिक नियुक्ति एक विधिवत गठित चयन समिति के माध्यम से स्वीकृत पद पर हुई थी। उन्होंने सीसीएस (पेंशन) नियम 1972 के नियम 13 का हवाला दिया, जिसके अनुसार यदि कोई कर्मचारी अस्थायी या संविदा रूप में निरंतर सेवा दे और बाद में बिना रुकावट के नियमित हो जाए तो वह सेवा पेंशन के लिए गिनी जाएगी।

सिविल कोर्ट के साक्ष्य बंद करने के आदेश को ठहराया सही
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट के साक्ष्य बंद करने के आदेश को सही ठहराया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने कहा कि वादी को साक्ष्य पेश करने के लिए तीन से अधिक मौके दिए गए। उसके बावजूद भी वादी साक्ष्य पेश न कर सका। याचिकाकर्ता ने सिविल जज सीनियर डिविजन शिमला की ओर से 10 जून 2025 को पारित उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसके तहत सिविल मामले में वादी याचिकाकर्ता के साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार को बंद कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का यह दावा गलत है कि उसे साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए केवल दो अवसर दिए गए थे। कोर्ट ने जमीनी आदेशों की समीक्षा की और पाया कि 11 जनवरी 2024 को मुद्दे तय होने के बाद वादी को तीन से कहीं अधिक अवसर दिए गए हैं। 9 अप्रैल, 11 जून, 21 अक्तूबर को वादी अनुपस्थित रहा। अदालत ने 24 फरवरी 2025 को साक्ष्य पेश न करने पर अधिकार बंद कर दिया।

भोजन लाइसेंस की वैधता पर अदालत ने मांगा स्पष्टीकरण
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सर्विस प्रोवाइडर को भोजन लाइसेंस देने की वैधता पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। अदालत को बताया गया कि प्रति छात्र की दर को 3800 से 3450 कर दिया है। अदालत को सर्विस प्रोवाइडर की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे से पता चला है कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत उसका लाइसेंस 18 जनवरी 2025 को जारी किया गया था। जबकि ठेका इस तारीख से पहले दिया गया था। अदालत में सरकार ने हलफनामे के माध्यम से 28 अगस्त को एक सारणीबद्ध चार्ट दिया है, जिसमें बताया गया कि निजी प्रतिवादियों के पास लाइसेंस तो है, लेकिन यह पुष्टि नहीं करता कि आवंटन के समय वह लाइसेंस वैध था या नहीं। अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। अदालत ने कहा कि हलफनामे में यह नहीं दर्शाया गया है कि ठेका टेंडर दिए जाने के समय कोई वैध लाइसेंस था या नहीं। अदालत ने इस पहलू पर नया हलफनामा दाखिल करने के स्पष्टीकरण निर्देश दिए हैं। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की पीठ ने की। समीक्षा की और पाया कि 11 जनवरी 2024 को मुद्दे तय होने के बाद वादी को तीन से कहीं अधिक अवसर दिए गए हैं। 9 अप्रैल, 11 जून, 21 अक्तूबर को वादी अनुपस्थित रहा। अदालत ने 24 फरवरी 2025 को साक्ष्य पेश न करने पर अधिकार बंद कर दिया।

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