HP High Court: परियोजना प्रभावित परिवारों की भूमि आवंटन की मांग वाली याचिकाएं हाईकोर्ट में खारिज, जानें

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) की नाथपा झाकड़ी जलविद्युत परियोजना के प्रभावित परिवारों को भूखंड आवंटन की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की अदालत ने माना कि जिस पुनः सर्वेक्षण पर याचिकाकर्ता भरोसा कर रहे हैं, उसका कोई कानूनी आधार नहीं है और सरकार ने भी इस पर कोई कार्यवाही नहीं की है।

याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि उन्हें एसजेवीएनएल की पुनर्वास और पुनर्स्थापन योजना के तहत भूखंड आवंटित किए जाएं, क्योंकि वर्ष 1990-91 में उनकी जमीन और मकान परियोजना के लिए अधिग्रहीत किए गए थे। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि भूमि अधिग्रहण के बाद बनी पुनर्वास योजना में भूमिहीन और आवासहीन परिवारों को भूखंड देने का प्रावधान था। शुरुआत में याचिकाकर्ताओं का नाम प्रभावित परिवारों की सूची में नहीं था, लेकिन वर्ष 2014-15 में हुए पुनः सर्वेक्षण में उनके नाम और उनके पूर्वजों के नाम शामिल किए गए और उन्हें प्रमाणपत्र भी जारी किए गए। उन्होंने तर्क दिया कि समान स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों को भूखंड आवंटित किए गए हैं, लेकिन उनके साथ भेदभाव किया गया।

प्रतिवादी एसजेवीएनएल ने अपने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ताओं के परिवार भूमिहीन परियोजना प्रभावित परिवारों के रूप में पहचाने और प्रमाणित नहीं किए गए थे। निगम ने 2014-15 के पुनः सर्वेक्षण को यह कहते हुए अस्वीकार किया कि वह इस कथित सर्वेक्षण से जुड़ा नहीं था और न ही सरकार द्वारा इसे स्वीकार या अंतिम रूप दिया गया था। निगम ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा दिया गया था और चूंकि अधिग्रहण के बाद भी उनके पास अन्य भूमि थी। इसलिए वह योजना के तहत भूमिहीन या आवासहीन परिवारों की परिभाषा में नहीं आते।

वहीं, प्रतिवादी राज्य सरकार ने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ताओं को उचित मुआवजा दिया गया था। पुनर्वास योजना के पैरा 3.9 के तहत भूमिहीन परिवार वह है ,जिसकी अधिग्रहण के बाद शेष कृषि भूमि 5 बीघा से कम हो और भवन एवं उससे जुड़ी भूमि खोने वाले व्यक्ति को भूमिहीन परियोजना प्रभावित परिवार नहीं माना जाएगा। स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता इन परिभाषाओं के तहत नहीं आते, क्योंकि उनके पास 5 बीघा से अधिक भूमि और मकान थे। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पुनः सर्वेक्षण हुआ था, लेकिन इसे नीति या दिशानिर्देशों के अनुसार नहीं किया गया था और सरकार से इसकी कोई मंजूरी नहीं मिली थी।

न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी अधिग्रहीत भूमि का उचित मुआवजा दिया गया था और यह विवादित नहीं है। पुनर्वास योजना लागू होने के बाद वर्ष 2019 में याचिकाएं दाखिल होने तक याचिकाकर्ताओं या उनके पूर्वजों द्वारा प्रभावित परिवारों की सूची में शामिल न किए जाने को लेकर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई थी। याचिकाकर्ताओं का पूरा मामला बाद के पुनः-सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसे एसजेवीएनएल ने अपनी जानकारी के बिना किया गया माना।

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