
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि गैर आपातकालीन सेवा वाले पूर्व सैनिकों को नागरिक सेवाओं में वरिष्ठता के लिए उनके सैन्य सेवाकाल का लाभ नहीं दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने पूर्व सैनिकों की ओर से दायर याचिका खारिज कर दी। न्यायाधीश सत्येन वैद्य की एकल पीठ ने राज्य सरकार की ओर से जारी 30 जनवरी 2018 और 25 फरवरी 2019 की दोनों अधिसूचनाओं को भी रद्द कर दिया, जिनके आधार पर याचिकाकर्ताओं ने लाभ की मांग की थी।
कोर्ट ने कहा कि एक बार जब कोई कानून या नियम असांविधानिक घोषित हो जाता है, तो वह शून्य हो जाता है। इसका अर्थ है कि वो कानून की दृष्टि में जन्म से ही अमान्य है। किसी न्यायिक घोषणा के प्रभाव को विधानपालिका की कार्यवाही से ही हटाया जा सकता है, न कि केवल कार्यकारी अधिसूचना से हटा सकते हैं। राज्य सरकार की अधिसूचनाएं कोर्ट के फैसले के प्रभाव को कमजोर नहीं कर सकती थीं।
याचिकाकर्ता हिमाचल प्रदेश कारागार और सुधारात्मक सेवा विभाग में ऑनरेरी हेड वार्डन के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने मांग की थी कि उनकी सैन्य सेवा को उनकी वरिष्ठता में जोड़ा जाए। उन्होंने अपना दावा हिमाचल राज्य गैर तकनीकी सेवाओं में प्रदेश के भूतपूर्व सैनिक (आरक्षण) नियम व 1972 के नियम 5(1) के आधार पर किया था। उनका तर्क था कि चूंकि वह वर्ष 2008 में वीके बहल मामले में आए फैसले से पहले नियुक्त हुए थे, जिसने इस नियम को असांविधानिक घोषित कर दिया था। इसलिए राज्य सरकार की 25 फरवरी, 2019 की अधिसूचना के अनुसार उन्हें वरिष्ठता का लाभ मिलना चाहिए।





