
पूर्व मंत्री एवं ओबीसी नेता रमेश धवाला ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. राजीव बिंदल की ओर से 9 अप्रैल को जारी कारण बताओ नोटिस पर तीन पेजों का जवाब दे दिया है। धवाला ने कहा कि वर्ष 2017 का चुनाव ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र से जीता था। उसके बाद उन्हें प्रोटेम स्पीकर बनाया गया और सरकार का गठन हुआ। वरिष्ठ विधायक होने के नाते मुझे कोई अधिमान नहीं दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से यह कहा था कि मुझे कोई भी पद नहीं चाहिए। लेकिन मेरे विधानसभा क्षेत्र ज्वालामुखी का विकास होना चाहिए।
उसके बाद तीन-चार माह के बाद योजना बोर्ड का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। नोटिस में धवाला ने तत्कालीन संगठन मंत्री पवन राणा पर आरोप लगाया है कि उन्होंने पांच वर्ष तक विकासात्मक कार्यों में हस्तक्षेप किया। जब स्थानीय भाजपा मंडल को भंग किया गया और उससे पहले जो पदाधिकारी बनाए गए, उस पर पार्टी विधायक होने के नाते कोई चर्चा नहीं की गई। इस बारे में जब मुख्यमंत्री से शिकायत की तो उन्होंने कोई संज्ञान नहीं लिया।
जयराम जब उनके विधानसभा क्षेत्र में आते थे तो कोई भी घोषणा नहीं करते थे। घोषणा भी होती थी तो उसका क्रियान्वयन नहीं होता था। वर्ष 2022 में ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र से बाहर करने और उन्हें देहरा भेजने का योजनाबद्ध तरीके से निर्णय किया गया। जब इस बारे में राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा ने मुझे पूछा था तो मैंने कहा था कि मैं चला जाऊंगा, लेकिन मुझे कम से कम 6 महीने पहले भेज देना। लेकिन चुनाव से मात्र बीस दिन पहले यह निर्णय किया गया और मुझे देहरा भेजा गया।
मैंने वर्ष 1998 में करोड़ों रुपये व तमाम प्रलोभनों को ठोकर मारकर कांग्रेस को समर्थन देने की बजाय भाजपा को चुना। धवाला ने कारण बताओ नोटिस में कहा कि कुर्सी की लालसा में भाजपा ने पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके उन लोगों को टिकट दिए जो कुछ महीने पहले पार्टी में आए थे और जो भाजपा को कोसते थे। देहरा में जिला कार्यालय में बैठक से पहले गेट पर ताला लगा दिया गया। यह भी विवाद का कारण रहा है। उचित होता कि इस पर बड़े नेता इस विवाद पर संज्ञान लेते, संवाद करते तो यह बिखराव न होता।





