फिर विवादों में रहा खुशवंत सिंह लिटफेस्ट..

#खबर अभी अभी सोलन ब्यूरो*

17 अक्तूबर 2023

कसौली में हुए 12 वें खुशवंत लिस्टफेट में इस बार भी वही हुआ जो पहले होता रहा है। तीन दिन चले इस लिटफेस्ट में सरकार और सिस्टम को घेरने का काम होता रहा। वो अब अब भी नहीं रूका। पहले हुए लिटफेस्ट में धारा-370, मॉब लीचिंग, सेंसर बोर्ड की कार्यशैली पर सवाल जैसे मुद्दों पर बवाल होता रहा है। इस बार इससे एक कदम आगे खालीस्तानी जैसे मुद्दों को जायज ठहराने की बातें हुई। यही नहीं कुछ वक्ताओं ने देश की अर्थव्यवस्था पर ऐसे सवाल उठाए की सिस्टम को आइना दिखा दिया। राजनीति, साहित्य, फिल्म, पत्रकारिता, उद्योग जगत की मशहूर व विभिन्न विचारधाराओं से संबंधित हस्तियों को एक मंच पर खुले विचार रखने के मकसद शुरू हुआ खुशवंत सिंह लिटफेस्ट खुशवंत सिंह की तरह बेबाक है।

तीन दिन के अलग-अलग सेशन में वक्ताओं ने जहां साहित्य, लेखन, फ़िल्म व पत्रकारिता पर अपने विचार रखें। वहीं पर कुछ बेबाक वक्ताओं ने प्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार पर ध्रुवीकरण के आरोप लगाए। इस समय सबकी नजरें इज़रायल और हमास के बीच हो रहे युद्ध पर है। पूरी दुनिया पर इसका क्या असर पड़ेगा सभी ये जनाना चाहते है। कसौली के लिटफेस्ट मंच में इस पर विशेषज्ञ ने चर्चा की। पहली बार भारत इजरायल के पक्ष में खड़ा दिख है, लेकिन पूर्व रॉ चीफ अमरजीत सिंह दुलत ने दूसरी बात की। उनका ये कहना कि हमास को हराना आसान बात नहीं अलग संदेश देता है। इस लिटफेस्ट में भारत और कनाडा के बीच उठे विवाद पर कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व प्रीमियर उज्जल दोसांझ ने कहा की तनाव को लेकर दोनों देश को आगे आकर बात करनी चाहिए। लेकिन चर्चा के बीच एक व्यक्ति ने खालिस्तान की मांग कर डाली। अर्थशास्त्री एवं ऑथर परकला प्रभाकर ने अपने वक्तव्य में भाजपा के दो शीर्ष नेतृत्व को ध्रुवीकरण का मास्टर करार दिया।

उत्तर प्रदेश के एक मुख्यमंत्री ने यह तक कह दिया था 80 औऱ 20 की बात राष्ट्रीय स्तर पर हो तो अचरज नहीं होगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाते रहे है और इस बार भी उठाया। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला भी भाजपा के खिलाफ अपना मत रखते रहे है। भारत पाकिस्तान युद्ध के हीरो मेजर जनरल इयान कार्डोजो ने अग्निपथ योजना को लेकर सरकार पर सवाल खड़े किए। उनके अनुसार जिस तरह सरकारें भारतीय सेना के साथ बर्ताव कर रही है, उसके विरुद्ध आवाज उठानी होगी। उन्होंने इन्फैंट्री में महिलाओं की एंट्री पर भी सवाल खड़े कर दिए।

कन्हैया के आने पर हुआ था विवाद
साल 2016 के लिटफेस्ट में जेएनयू के छात्र कन्हैया कुमार के कसौली पहुंचने पर भी माहौल पूरी तरह गर्मा गया। राष्ट्रवाद पर हुए उस सेशन में सेना के एक पूर्व अधिकारी सहित अन्य सैन्य अधिकारियों ने कन्हैया के साथ जबरदस्त बहस की। उधर, भाजपा विचारधारा के लोगों ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। वे इसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर षड्यंत्र करार दे रहे है। पत्रकार, कलाकार, समाज सेवी और साहित्यकारों के लबादे में लिपटे देशद्रोही तत्वों की सोची समझी रणनीति बता रहे है। ये लोग यहां तक कह रहे है ऐसे मंच देशविरोधी ताकतों को अपनी विचारधारा को प्रचारित करने के आगे लाते है।
वहीं खुशवंत सिंह लिटफेस्ट समर्थक तर्क देते हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अभिव्यक्ति की आजादी जरूरी है। ये अधिकार हमें संविधान ने दिया है। हम हर विषय पर खुले दिल और दिमाग से चर्चा करतें है। हम हमेशा सत्ता के खिलाफ बोलते है। 2014 से पहले जब बीजेपी की सरकार नहीं थी। तो कांग्रेस सरकार की नीतियों की आलोचना भी करते रहे। आज बीजेपी की सरकार है। सरकार की नीतियों के खिलाफ भी बोलेंगे। बहरहाल, लिटफेस्ट तो खत्म हो गया। कई सवाल छोड़ गया। इन सवालों से कैसे बाहर आए इसका कोई रास्ता कोई नहीं बता रहा।

#खबर अभी अभी सोलन ब्यूरो*

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