भारत ने 1971 के बाद पहली बार पाकिस्तान पर ऐसा हमला किया, थल-वायु-नौसेना की संयुक्त स्ट्राइक

भारत ने 1971 के बाद पहली बार पाकिस्तान पर ऐसा हमला किया है, जिसमें थल-वायु और नौसेना ने संयुक्त रूप से कार्रवाई की है। सेना ने समन्वय के साथ जिस ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया है, उसमें केवल आतंकवादी ठिकानों पर अत्याधुनिक मिसाइलों से स्ट्राइक की गई है। ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवादी संगठनों- लश्कर-ए-तैय्यबा, हिजबुल मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर जिस तरह का हमला किया गया है, इसमें बड़ी संख्या में दहशतगर्दों के मारे जाने का अनुमान है।

54 साल बाद पहली बार ऐसी सैन्य कार्रवाई, 1971 में हुआ था बांग्लादेश मुक्ति संग्राम
1971 के बाद पहली बार भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना ने संयुक्त अभियान में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए। 1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में संयुक्त रूप से काम किया है।रात 1.44 बजे नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले
ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने रात 1.44 बजे नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक मिसाइल हमले किए। लगभग 23 मिनट के ऑपरेशन को अंजाम देने के तत्काल बाद भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने अमेरिकी समकक्ष और विदेश मंत्री- मार्को रुबियो से बात कर उन्हें पूरी कार्रवाई की जानकारी दी। भारतीय सेना ने स्ट्राइक के तत्काल बाद जारी बयान में कहा, लक्ष्यों के चयन में संयम और सावधानी बरती गई है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का फैसला, सेना ने दिखाया अभूतपूर्व पराक्रम
बांग्लादेश की आजादी के लिए 1971 में भारत ने न केवल सैन्य संघर्ष किया, बल्कि इसमें राजनीतिक, आर्थिक और मानव संसाधनों का भी बड़ा योगदान रहा था। भारत ने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई, और दोनों देशों के बीच गहरे सांस्कृतिक और राजनीतिक रिश्ते बने। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मजबूत फैसले के बाद भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में पाकिस्तान के खिलाफ सीधे सैन्य हस्तक्षेप किया था। पाकिस्तान के लिए 16 दिसंबर,1971 का दिन सबसे काला दिन था, जब बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बाद उसके सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष ढाका में आत्म समर्पण किया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद किसी भी सेना द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था, क्योंकि पाकिस्तान के 90,000 से ज्यादा सैनिकों ने समर्पण किया था।

1971 की सैन्य कार्रवाई को लेकर आज भी होती है चर्चा
दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने जब अपने अधिकारों की मांग की तो पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने दमन की कार्रवाई शुरू की। हालात की गंभीरता को देखते हुए इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ को अपने करीबी मंत्रियों के साथ बातचीत के लिए बुलाया। वह चाहती थीं कि जनरल युद्ध में जाएं और पूर्वी पाकिस्तान के पर्याप्त क्षेत्र को मुक्त कराएं। जनरल मानेकशॉ जल्दबाजी करने के खिलाफ चेतावनी दे रहे थे। उस समय गर्मियों का मौसम था और देशभर में फसलों की कटाई चल रही थी। लिहाजा ट्रेनों और सड़कों से अनाज की ढुलाई होती या फौज की आवाजाही। और फिर उसके बाद मानसून आने वाला था, जिसमें बांग्लादेश के नदी घाटी वाले इलाकों से सशस्त्र बलों की आवाजाही मुश्किल होती। सैन्य सलाह को ध्यान में रखते हुए श्रीमती गांधी ने युद्ध का फैसला सैन्य बल पर छोड़ दिया। सैम मानेकशॉ ने पीएम से वादा किया कि सेना निर्धारित समय में इतिहास और भूगोल बदल सकती है। सशस्त्र बल ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी, जो वास्तव में ऐतिहासिक जीत में परिणत हुई, दूसरी तरफ श्रीमती गांधी भारत की मानवीय पहल के लिए दुनिया का समर्थन हासिल करने में लग गईं।

पड़ोसी देश को भारत के खिलाफ जीत का पूरा भरोसा था
पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खाना को भरोसा था कि तीन कारणों से वह भारतीय सशस्त्र बलों को सफलता हासिल नहीं करने देंगे। पहला, पश्चिम पाकिस्तान की उसकी अच्छी तरह से सुसज्जित सैनिक भारत के रणनीतिक राज्यों-पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर को धमकाने के लिए पर्याप्त है। दूसरा, हिमालय के साथ चीन की सैन्य तैयारी भारत को रोकने के लिए पर्याप्त होगी। तीसरा, वह अमेरिका पर भरोसा कर रहा था कि अगर भारत के ऑपरेशन को रोकना पाकिस्तान के लिए मुश्किल हो जाए, तो अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करेगा। हालांकि, इतिहास के इस अभूतपूर्व सैन्य संघर्ष में भारत की सेना ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए।

54 साल पुरानी संयुक्त सैन्य कार्रवाई की यादें ताजा
पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने और मुक्त बांग्लादेशी सरकार स्थापित करने के लिए भारत का सैन्य अभियान पहले बंदरगाह शहर खुलना और चिटगांव में शुरू हुआ, जो अंत में भारतीय जांबाजों के पराक्रम के सामने 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के सरेंडर के साथ समाप्त हुआ। भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बीते 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के दो हफ्ते बाद जिस तरह की सैन्य कार्रवाई कर, पाकिस्तान की सरजमीं पर दहशतगर्दों के ठिकानों को तबाह किया है, इससे थल सेना, नौसेना और वायुसेना की 54 साल पुरानी संयुक्त सैन्य कार्रवाई की यादें ताजा हो गईं हैं।

 

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