
ससुराल को छोड़ अलग रह रही पत्नी के भरण-पोषण के लिए पति कानूनी और नैतिक रूप से बाध्य है। पत्नी ने ससुराल छोड़ दिया है, यह आधार पति को उसके दायित्वों से बचने की अनुमति नहीं देता है। यह टिप्पणी रामपुर बुशहर स्थित अपर प्रधान न्यायाधीश (पारिवारिक न्यायालय) किन्नौर की अदालत ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण-पोषण और मुकदमेबाजी खर्च के अनुदान के लिए दायर आवेदन का निपटारा करने के दौरान की। अदालत ने बताया कि उच्च न्यायालय ने छाजू राम बनाम आशा देवी 2016 क्रिमिनल लॉ जर्नल 1200 में यह निर्धारित किया है कि एक हिंदू पुरुष का अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने का दायित्व आधुनिक अवधारणा का नहीं है, बल्कि यह हिंदू कानून में भी मौजूद है।
दरअसल, शिमला जिले की एक दंपती के तलाक की याचिका अपर प्रधान न्यायाधीश (पारिवारिक न्यायालय) किन्नौर की अदालत में विचाराधीन है। इसी बीच पत्नी की ओर से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत भरण-पोषण और मुकदमेबाजी खर्च के अनुदान के लिए आवेदन किया गया। आवेदन में बताया कि महिला गरीब है। उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और न ही उसके पास तलाक के मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए पैसे हैं। महिला अपनी वृद्ध मां के साथ रह रही है। पति के पास सेना से मिल रही पेंशन और एक कंपनी में नौकरी से आय का पर्याप्त स्रोत है। उसके पास जमीन जायदाद है। निर्देश दिया जाए कि पति अपनी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में पांच हजार रुपये प्रति माह और मुकदमेबाजी खर्च के रूप में 35 हजार रुपये का भुगतान करे।
वहीं, पति ने आरोपों का खंडन करते हुए बताया कि पत्नी बिना किसी पर्याप्त कारण उससे अलग हो गई। उसे कभी परेशान नहीं किया। वह भारतीय सेना में सेवारत था और सेवानिवृत्ति तक पूरा वेतन उसे देता था। पत्नी के नाम पर पहले ही 4.50 लाख रुपये एफडी कर रखी है। पत्नी के भाई के नाम पर रामपुर क्षेत्र में 10 लाख रुपये जमीन खरीदी है। पत्नी बुनाई, शिल्पकला और टेलरिंग के काम से 10 हजार रुपये कमा रही है। एक पेशेवर ब्यूटीशियन भी है। इसके अलावा चाइनीज खाना बनाने में विशेषज्ञ है। वह मां के घर पर एक होटल चलाती है और 20 हजार रुपये अधिक कमाती है। वह अपने वृद्ध माता-पिता के साथ रह रहा है। दोनों उस पर ही निर्भर हैं। इसलिए आवेदन को खारिज किया जाए। अदालत ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, पक्षकारों की स्थिति, उनकी दलीलों से उभरी स्थिति और प्रतिवादी एक पेंशनभोगी है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए न्यायालय का सुविचारित मत है कि पति निश्चित रूप से पत्नी को मासिक भरण-पोषण राशि के रूप में तीन हजार रुपये का भुगतान कर सकता है। इसके अलावा प्रतिवादी को आवेदक को 25 हजार रुपये का एकमुश्त मुकदमा शुल्क भी देना होगा।





