हिमाचल प्रदेश: यमुना-टौंस की धारा में उलझीं हिमाचल-उत्तराखंड की सीमाएं, विवाद की आड़ में पनप रहा खनन माफिया

उत्तराखंड राज्य के गठन को 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इतने वर्षों बाद भी हिमाचल-उत्तराखंड राज्य का सीमांकन नहीं हो सका है। यमुना नदी पर करीब 17 किलोमीटर और टौंस नदी पर करीब 10 किलोमीटर हिमाचल-उत्तराखंड राज्यों की सीमा साथ लगती है। सीमांकन नहीं हो पाने का लाभ यहां अवैध खननकारी उठा रहे हैं। राज्य सीमांकन व हिमाचल में यमुना नदी किनारे अलग से मार्ग बनने पर प्रदेश सरकार को खनन से मिलने वाला राजस्व दुगना हो सकता है। लेकिन अब तक राज्य सरकारों व प्रशासन की तरफ से गंभीर प्रयास नहीं हो सके हैं।

उत्तर-प्रदेश के शासनकाल के समय में जुलाई 1966 में दोनों राज्यों के बीच सीमा के निर्धारण को मुख्य सचिव स्तर पर हुई। बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार उत्तर-प्रदेश और हिमाचल के बीच सीमा क्षेत्र के निर्धारण को सर्वे ऑफ इंडिया (भारतीय सर्वेक्षण विभाग) से सीमांकन कराने पर सहमति बनी थी। सीमांकन की कार्रवाई नहीं हो सकी। उत्तर प्रदेश के समय से लंबित सीमा विवाद का मामला 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से पृथक हुए उत्तराखंड के गठन के 25 वर्षों बाद भी जस का तस है।

दोनों राज्यों के बीच यमुना और टौंस नदी का करीब 27 किलोमीटर का क्षेत्र साथ लगता है। दोनों नदियों में सर्वाधिक उप खनिज रेत, बजरी व पत्थर प्रचुर मात्रा में रहता है। पांवटा साहिब के यमुना पुल से लेकर डाकपत्थर बैराज और रामपुर मंडी समेत क्षेत्र से लेकर हरियाणा तक सीमा लगती है। इन स्थलों पर अवैध खनन भी होता है।

सिरमौर क्रशर संघ अध्यक्ष मदन मोहन शर्मा ने बताया कि वर्ष 2024-25 में खनन से रिकॉर्ड 54.86 करोड़ राजस्व सरकार को मिला है। राज्य सीमांकन व यमुना नदी किनारे खनन सामग्री वाले वाहनों को अलग मार्ग से प्रदेश सरकार को मिलने वाला राजस्व दुगना हो सकता है। अभी केवल राज 9 बजे से सुबह 5 बजे तक खनन समाग्री से भरे वाहन पांवटा में चलते हैं। ढाई दशकों से अधिक समय से भी सीमा विवाद के निपटारे को लेकर उत्तराखंड और हिमाचल की तरफ से गंभीर प्रयास नहीं हो पाए।

जून 2013 में ही एक बार सीमा निर्धारण को दोनों राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों के संयुक्त सर्वे के लिए देहरादून के जिलाधिकारी ने सिरमौर के उपायुक्त को पत्र भेजा था। इसके बाद सर्वे के लिए विकासनगर के उपजिलाधिकारी अशोक पांडेय के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी गई, लेकिन कोई ठोस समाधान ही नहीं निकल सका।

सीमांकन विवाद का पूरा फायदा उठा रहा खनन माफिया
राज्य के सीमा विवाद का सीधा फायदा अवैध खनन माफिया उठाता रहा है। पांवटा की राज्य सीमा अवैध खनन के लिए संवेदनशील क्षेत्र में है। हिमाचली सीमा से भी खनन कर उप खनिज संपदा को उतराखंड-उत्तर प्रदेश तक पहुंचाया जाता है। छापामारी होने पर उत्तराखंड में वाहन दौड़ जाते हैं। डेढ़ दशक पहले सिरमौर के खनन अधिकारी के वाहन का उत्तराखंड क्षेत्र में घेराव किया गया। मार्च 2013 में भंगानी क्षेत्र में अवैध खनन से रोकने पर खननकारी चौकीदार को उत्तराखंड उठा ले गए थे। पिछले वर्ष भी पांवटा के खनन निरीक्षक संजीव कुमार को छापेमारी के दौरान रात को उतराखंड उठा ले गए थे, जो किसी तरह चंगुल से छूट कर वापस पहुंचे थे।
सर्वे ऑफ इंडिया को भेजी फाइल : हर्षवर्धन चौहान
उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि दो राज्यों की सीमांकन से जुड़ा मामला है। इस संदर्भ में सर्वे आफ इंडिया को फाइल भेजी गई है। इसमें राज्य सीमा निर्धारण को संयुक्त सर्वे को टीमें गठित करने की मांग रखी गई है।

Share the news