
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना के सेवा विस्तार मामले में राज्य सरकार से हलफनामा दायर करने को कहा है। अदालत ने कहा कि हलफनामे में बताया जाए कि मुख्य सचिव सेवा विस्तार मामले में क्या मुख्यमंत्री कैबिनेट की मंजूरी के बिना रिकमेंडेशन भेज सकते हैं कि नहीं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जो सिफारिशें केंद्र सरकार को भेजीं, क्या वे नियमों के विपरीत है कि नहीं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने अदालत से कुछ और जानकारी और दस्तावेज पेश करने के लिए समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार किया।
बहस के दौरान प्रतिवादी प्रबोध सक्सेना की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम 1958 का 3 का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि मुख्यमंत्री की ओर से की गई सिफारिश में सार्वजनिक हित के साथ पूर्ण औचित्य होना चाहिए। इस पर महाधिवक्ता ने एक विशिष्ट हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा, जिससे यह स्पष्ट किया जा सके कि क्या मुख्यमंत्री की सिफारिश इन नियमों के दायरे में आती है।
इसके साथ ही भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि इस मामले से संबंधित रिकॉर्ड नई दिल्ली से शिमला भेज दिया गया है और आज पहुंचने की संभावना है। दशहरा की छुट्टियों को देखते हुए अदालत ने निर्देश दिया कि रिकॉर्ड रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष पेश किया जाए, जो उसकी एक फोटोकॉपी सीलबंद लिफाफे में रखेंगे। मूल रिकॉर्ड को संबंधित अधिकारी को सीलबंद लिफाफे में सौंप दिया जाएगा। अदालत ने राज्य सरकार को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने को भी कहा, जिसमें 28 मार्च 2025 को केंद्र सरकार की ओर से दी गई मंजूरी के बाद पारित आदेश भी शामिल हो। इन कारणों से, मामले की सुनवाई 13 अक्तूबर तक के लिए स्थगित कर दी गई। मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना को सेवा विस्तार मामले को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। 30 सितंबर को मुख्य सचिव की सेवा विस्तार की अवधि समाप्त हो रही है।





