हिमाचल प्रदेश: हिमाचलियों के शरीर की बनावट पर पहली बार वैज्ञानिक पड़ताल, यहां पर 40 हृदयों पर अध्ययन जारी

हिमाचलियों के शरीर की बनावट अब विज्ञान की कसौटी पर परखी जा रही है। लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज नेरचौक के विशेषज्ञ पहली बार हृदय की बड़ी नस (कोरोनरी साइनस) और पेट की तिल्ली (स्प्लीन) के माप पर शोध कर रहे हैं। यह अध्ययन एनाटॉमी विभाग कर रहा है और मार्च तक यह पूरा होगा। इसका मकसद पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के शरीर के अनुरूप मेडिकल उपकरणों का सटीक डिजाइन तैयार करना है। यह अध्ययन न सिर्फ हिमाचल में चिकित्सा अनुसंधान का नया अध्याय खोलेगा, बल्कि आने वाले समय में स्थानीय आबादी के लिए अधिक सुरक्षित और सटीक इलाज का रास्ता भी प्रशस्त करेगा।

अध्ययन दल में डॉ. पंकज सोनी, डॉ. पंकज कुमार और डॉ. मनोज शामिल हैं, जबकि फॉरेंसिक विभाग भी सहयोग कर रहा है। विभागाध्यक्ष डॉ. प्रदीप कश्यप के अनुसार अब तक 40 हृदयों में से 15 पर परीक्षण पूरे हो चुके हैं। यह शोध मृतकों के हृदयों पर किया जा रहा है और प्राप्त डाटा से भविष्य में उपकरण निर्माण में सटीकता बढ़ेगी। हर क्षेत्र के लोगों के शरीर की बनावट और अंगों का आकार अलग होता है।

हृदय की ‘कोरोनरी साइनस’ में जब उपकरण डाला जाता है, तो उसकी लंबाई और व्यास का सही माप बेहद जरूरी होता है। यही जानकारी अब तक हिमाचल के संदर्भ में उपलब्ध नहीं थी। इसी तरह तिल्ली (स्प्लीन) के आकार का माप भी किया जा रहा है। यह अंग शरीर में खून को फिल्टर करने और संक्रमण से लड़ने का कार्य करता है। पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने और संक्रमण से लड़ने के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने का काम करता है।

मरीजों को उपचार में अधिक सटीकता और सुरक्षा मिलेगी
डॉ. कश्यप का कहना है कि तिल्ली का आकार भी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बदलता है। इसलिए स्थानीय डाटा बेहद जरूरी है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस शोध से न केवल प्रदेश में मेडिकल शिक्षा को नई दिशा मिलेगी, बल्कि भविष्य में स्थानीय जरूरतों के अनुरूप मेडिकल उपकरणों का निर्माण भी संभव होगा। इससे पहाड़ी क्षेत्रों के मरीजों को उपचार में अधिक सटीकता और सुरक्षा मिलेगी।

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