पूर्व मंत्री राजन सुशांत का माफीनामा खारिज, व्यक्तिगत तौर पर पेश होने के आदेश, जानें पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ और न्यायपालिका पर सोशल मीडिया पर लगाए गंभीर आरोपों पर पूर्व मंत्री राजन सुशांत व उनके बेटे धैर्य के कागजी माफीनामे को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि प्रतिवादियों की ओर से केवल कागजी तौर पर माफी मांगी गई है। यह माफीनामा किसी खेद और पश्चाताप को नहीं दिखाता, बल्कि कानून से बचने की एक रणनीति प्रतीत होती है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने मामले को 16 जुलाई को सूचीबद्ध किया है। इस दिन आरोप तय किए जाएंगे। खंडपीठ ने प्रतिवादियों को व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में उपस्थित रहने को कहा है।

अदालत ने पाया कि प्रतिवादियों ने शुरुआत से अब तक किसी प्रकार का खेद नहीं जताया है। न्यायालय के अनुसार एक वास्तविक माफी ईमानदारी से भरी होनी चाहिए। उसमें पश्चाताप के भाव होने चाहिए न कि कानून से बचने के लिए रणनीति के रूप में इस्तेमाल की जाए। पूर्व मंत्री राजन सुशांत और उनके बेटे अधिवक्ता धैर्य सुशांत ने हाईकोर्ट के जज और न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाए थे। कोर्ट ने आरोपों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई शुरू की। मामले में प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के लिए कहा।

गौरतलब है कि सुशांत के पुश्तैनी घर पर कुछ लोगों ने चोरी की। पुलिस ने उन पर एफआईआर दर्ज की। आरोपियों ने शिकायत के खिलाफ हाईकोर्ट में अंतरिम जमानत याचिका लगाई। हाईकोर्ट ने आरोपियों को अंतिम जमानत की पुष्टि करने के लिए मामले को कुछ दिन के बाद रखा। इसी बीच, आरोपियों की जमानत के खिलाफ सुशांत ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया। अदालत के आदेश आने से पहले ही इन दोनों ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीश के खिलाफ सबूतों को नजरअंदाज करने के आरोप लगाए।
कहा कि न्यायाधीश उन अपराधियों को रिहा कर रहे थे, जो नशा तस्करी व अन्य अपराधों में शामिल थे। नशीले पदार्थों को बेचने वाले डीलरों और वकीलों के बीच नेटवर्क है और उनकी न्यायाधीश तक पहुंच है। प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि कुछ न्यायिक अधिकारी इन्हें संरक्षण देते हैं। प्रतिवादी ने हिमाचल हाईकोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग न होने पर भी सवाल उठाए थे। न्यायालय ने उक्त बयानों को अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 15 के तहत आपराधिक अवमानना मानते हुए प्रतिवादियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
भ्रष्टाचार के आरोपी को सहायक ड्रग कंट्रोलर पद पर तैनाती देने पर सवाल
हिमाचल हाईकोर्ट ने रिश्वत लेने और भ्रष्टाचार के आरोपी निशांत सरीन को धर्मशाला में सहायक ड्रग कंट्रोलर के पद पर तैनाती देने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने मामले में राज्य सरकार और निशांत सरीन को नोटिस जारी किया है। खंडपीठ ने निशांत को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि कैसे एक अधिकारी को संवेदनशील पद पर तैनात किया गया है। जिस पर पहले ही रिश्वत लेने, भ्रष्टाचार और गंभीर आपराधिक आरोप लगाए गए हैं।
अधिकारी को संदिग्ध सूची में शामिल किया गया है, उसके बावजूद सरकार ने उसे एक संवेदनशील पद पर तैनात कर रखा है। याचिका में बताया गया है कि निशांत को सबसे पहले 4 सितंबर 2019 को निलंबित किया गया था। यह निलंबन सोलन जिले के स्टेट विजिलेंस और एंटी करप्शन ब्यूरो पुलिस स्टेशन में 21 अगस्त 2019 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की धारा 11 और 12 में दायर केस के तहत किया गया था। 2022 में पंचकूला के सेक्टर 20 में आईपीसी की धाराओं के तहत एक और मामला दर्ज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरीन को चार सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।

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